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पहला मनुष्य और पाप की उत्पत्ति

पहला मनुष्य और पाप की उत्पत्ति | बाइबल के अनुसार 📖 "इसलिए जैसे एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया और पाप के द्वारा मृत्यु आई, वैसे ही मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया।" – (रोमियों 5:12) प्ररिचय  क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया में पाप और मृत्यु की शुरुआत कैसे हुई? बाइबल हमें बताती है कि जब पहला मनुष्य आदम और हव्वा परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किए, तब से पाप संसार में आया। इसी कारण से संपूर्ण मानवजाति पाप के अधीन हो गई। इस लेख में, हम बाइबल के आधार पर पाप की उत्पत्ति और इसके प्रभाव को विस्तार से समझेंगे। पहला मनुष्य – आदम और हव्वा परमेश्वर ने जब सृष्टि की, तो सब कुछ निर्मल और उत्तम था (उत्पत्ति 1:31)। फिर उसने पहले मनुष्य, आदम को मिट्टी से बनाया और उसमें जीवन की सांस फूँकी (उत्पत्ति 2:7)। बाद में, परमेश्वर ने आदम की पसली से हव्वा को रचा ताकि वह उसकी संगिनी हो (उत्पत्ति 2:22)। परमेश्वर ने उन्हें एदेन उद्यान में रखा और वहां उन्हें सब प्रकार की स्वतंत्रता दी, लेकिन साथ ही एक आज्ञा भी दी: 👉 "तू भले-बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल न खाना, क्योंकि जिस दिन ...

सच्चे प्यार के लिए तरसजाना

सच्चे प्यार के लिए तरसजाना चाहें हमे पता हो या न हो लेकिन हम सब का दिल प्यार के लिए तरसता हैं. हम सब को प्रेम करने के लिए ही बनाया गया है. परमेश्वर ही प्यार है. क्या आप परमेश्वर के सच्चे प्यार के लिए तरस रहे हो? तो क्या बदले में आप फिर उन्हें आपके पूरे दिल, आत्मा, मन और बल से प्यार करते हो? परंतु सच्चा प्यार क्या है? यही शब्द के अनेक मतलब है. हम एक ही सास में कह सकते हैं, "में कॉफी से प्रेम करता हूॅ. में अपने पति या पत्नी से प्रेम करता हूॅ. में यीशु मसीह से प्रेम करता हूॅ." सच्चा प्यार क्या है यह हम कैसे जान सकते है? वह कैसा दिखता है? वह कैसा महसूस होता है? क्या इससे कोई फर्क पड़ता हैं? सच्चा प्यार सनसनी, अनुभूति, विशेष कार्य और सिद्धांत से भी बढ़कर हैं. सच्चा प्यार दुसरों की ग्वाही की वास्तविक इच्छा हैं. जीने का मकसद और कलिसिया का अस्तित्व ही सच्चा प्यार का उद्देश्य है जो परमेश्वर को आराधना देता है . कुछ लोग कहेंगे की सेवकाई ही कलिसिया का एकमात्र उद्देश्य हैं: "दुनिया को इसाई धर्म प्रचार करना ही कलिसिया का प्रथम कार्य है. कलिसिया का विशेष कार्य है सेव...

यीशु मसीह का चरित्र कैसा था।

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  यीशु मसीह का चरित्र कैसा है 1. यीशु ख्रीस्ट पवित्र था इस विषय को यीशु ख्रीस्त की पाप हीनता वाले अध्याय में स्पष्ट किया जा चुका है।यीशु मसीह पवित्र था,पूर्णतः पवित्र था, क्योंकि जन्म जन्म से ही उसमें पाप का स्वभाव नहीं था।और उसने कोई पाप नहीं किया और सदा वही किया जो उचित और शुद्ध था। उद्धारकर्ता ने अपनी पवित्रता,धार्मिकता से प्रेम और दुष्टता से घृणा द्वारा प्रकट की। यह पवित्रता मंदिर की शुद्ध किए जाने और पाप तथा पाखंड की निंदा करने में दिखाई देती है। यीशु पाप से इतनी घृणा करता है की वह पाप को पराजित करने और उनको इन सबको, जो में विश्वास करेंगे, धार्मिकता प्रदान करने के लिए, क्रूस मरने के लिए तैयार था। गलातियों3:13 बताता है यीशु मसीह व्यवस्था के अधीन हमारे लिए समर्पित बन गया। रोमियो 4:6  बताता है कि परमेश्वर उनको धार्मिकता प्रदान करता है, जो यीशु ख्रीस्त को अपना उद्धार करता ग्रहण करते हैं। देखिए प्रकाशिवाक्य 19:8 2.यीशु मशीह प्रेममय था उद्धार करता का प्रेम दो तरह से प्रकट किया गया: 1 -अपने पिता के प्रति और 2 -मानव जाति के प्रति यूहन्ना 14:31 , "संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम र...

बपतिस्मा क्या है?क्या बपतिस्मा लेना जरूरी है?

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Durgesh Kumar massey बपतिस्मा क्या है?क्या बपतिस्मा लेना जरूरी है? हम आत्माओं को मसीह के निकट लाकर उचित कार्य करते हैं परंतु हमें उद्धार की निश्चयता की भी शिक्षा विशेष रूप से देनी चाहिए जैसा कि प्रेरितों के काम8:39 में लिखा है। बपतिस्मा नए नियम का सिद्धांत है  :- परंतु ,' बपतिस्मा  'शब्द (1कुुरींथियों 10:2) में पाया जाता है और इसको इसराइली के विषय में कहा गया है,जब कि वे बादल कि छाया तले लाल सागर पार कर रहे थे। यूहन्ना का संदेश यह था (मरकुस 1:4) "में यूहन्ना जंगल में बपतिस्मा देता और पापों की क्षमा के लिए मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार किया करता था। यूहन्ना का बपतिस्मा उसकी अपनी नवीन प्रक्रिया नहीं थी, परंतु यह परमेश्वर की तरफ से स्वर्ग की ओर से था।(मरकुस11:30) भीड़ की भीड़ यूहन्ना से बपतिस्मा लेने आती थी जैसा की (लूका3:7) में लिखा है,शास्त्री और फरीसी ने यूहन्ना के बपतिस्मा को अस्वीकार कर दिया और उसके फल स्वरुप आत्मिक कष्ट सहन करना पड़ा। (लुका 7:30) में लिखा है फरीसियों और व्यवस्थापकों ने यूहन्ना से बपतिस्मा ना लेकर परमेश्वर की मनसा को अपने...

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