यीशु मसीह का चरित्र कैसा है
1.यीशु ख्रीस्ट पवित्र था
इस विषय को यीशु ख्रीस्त की पाप हीनता वाले अध्याय में स्पष्ट किया जा चुका है।यीशु मसीह पवित्र था,पूर्णतः पवित्र था, क्योंकि जन्म जन्म से ही उसमें पाप का स्वभाव नहीं था।और उसने कोई पाप नहीं किया और सदा वही किया जो उचित और शुद्ध था।
उद्धारकर्ता ने अपनी पवित्रता,धार्मिकता से प्रेम और दुष्टता से घृणा द्वारा प्रकट की। यह पवित्रता मंदिर की शुद्ध किए जाने और पाप तथा पाखंड की निंदा करने में दिखाई देती है। यीशु पाप से इतनी घृणा करता है की वह पाप को पराजित करने और उनको इन सबको, जो में विश्वास करेंगे, धार्मिकता प्रदान करने के लिए, क्रूस मरने के लिए तैयार था। गलातियों3:13 बताता है यीशु मसीह व्यवस्था के अधीन हमारे लिए समर्पित बन गया। रोमियो 4:6 बताता है कि परमेश्वर उनको धार्मिकता प्रदान करता है, जो यीशु ख्रीस्त को अपना उद्धार करता ग्रहण करते हैं। देखिए प्रकाशिवाक्य 19:8
2.यीशु मशीह प्रेममय था
उद्धार करता का प्रेम दो तरह से प्रकट किया गया: 1-अपने पिता के प्रति और 2-मानव जाति के प्रति यूहन्ना 14:31, "संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूं।"
यीशु मसीह ने यह प्रेम पिता की आज्ञा करिता प्रकट किया। यूहन्ना 6:38 क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं,वरन अपने भेजने वाले की इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूं" यूहन्ना 14:31 भी देखिए। यीशु ने वह काम पूरा किया जो उसे पूरा करने के लिए सौंपा गया था यूहन्ना 17:4-17:30 ।
मत्ती 9:13 दर्शाता है कि यीशु मसीह मत्ती 5:44 में दी गई अपनी शिक्षा के प्रति आज्ञाकारी रहा, और उसने अपने शत्रुओं से प्रेम किया लुका23:34 यीशु बच्चों से प्रेम रखता था। बाइबल में वर्णित दृश्य मैं इसका सुंदर विवरण प्रस्तुत करती है। यीशुु मसीह ने निर्धन बनकर अपना प्रेम प्रदर्शित किया जिससे हम धनवान बन सके, 2 कुरुंथियो 8:9 तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह जानते हो कि वह धनी होकर भी तुम्हारे लिए कंगाल बन गया ताकि उसके कंगाल हो जाने से तुम धनी हो जाओ।
उसके श्रेष्ठ प्रेम का प्रमाण यह है की वह स्वेच्छा से हमारे लिए मरा। यूहन्ना 15:13 "इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रो के लिए अपना प्राण दे। " यीशु मसीह निरन्तर दिन प्रतिदिन हमारी देखभाल और भरण पोषड़ करके हम पर अपना प्रेम प्रकट करता रहता है. मत्ती 6:33
3.आत्माओं के प्रति यीशु मसीह का प्रेम
आइए अपने उद्धार करता के मनुष्यों की आत्माओं के प्रति अनंत प्रेम का अनुसरण करें जो कि पाप में भटकने वालों के लिए ह्रदय में है। वह एक अच्छा चरवाहा बनकर आया जिससे वह यहूदी और गैर यहूदी दोनों ही में भटकी हुई भेड़ों को खोज निकाले। यूहन्ना 10:16, "मेरी और भी भेड़े है जो इस भेड़शाला की नहीं, मुझे उनका लाना आवश्य है।
4.यीशु मसीह करुणामय था
यीशु मसीह करुणामय था,क्योंकि बाइबल का एक छोटा पद कहता है, "यीशु के आंसू बहने लगे" (युहन्ना 11:35)। यीशु ने भीड़ के प्रति करुणा प्रकट की मरकुस 6:34 "उसने निकाल कर बड़ी भीड़ देखी और उन पर तरस खाया क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे जिनका कोई रखवाला न हो,"
काश कोई ऐसी करुणा हमारे अंदर भी हो। यीशु की करुणा ने उसके हृदय में लोगों की शारीरिक आवश्यकता के लिए चिंता उत्पन कर दी: युहन्ना 6:34 "यीशु की करुणा ने उसे अंधो को दृष्टि प्रदान करने के लिए बाध्य कर दिया: युहन्ना 9:1-38 व मत्ती 20:34 दुष्टात्माएं द्वारा सताय गए लोगों के प्रति उसके ह्रदय में करुणा थी।
हम बहुदा कहा करते है कि हमारे हृदय में करुणा है, परंतु यीशु मसीह ने अपनी करुणा को कार्यों द्वारा प्रदर्शित किया। वह खोई हुई भेड़ों के लिए चरवाहा बना, वह नाश होने वालों के लिए उद्धारकर्ता बना, उसने रोगियों को चंगा किया और उसने दुष्ट आत्माओं को निकाला। आइए हम वचन और कर्म दोनों ही के द्वारा प्रेम करे।
5.यीशु मसीह प्रार्थनाशील था
हमें चारों सुसमाचार में उद्धार कर्ता के महान प्रार्थना पूर्ण जीवन की झलक मिलती है, परंतु सबसे अधिक प्रभावशाली विवरण इब्रानियों 5:7 में पाया जाता है,"उसने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार कर और आंसू बहा बहाकर प्रार्थनाएं और बिनती की।" यीशु मसीह के लिए सम्पूर्ण रात्रि प्रार्थना करना असाधारण बात नहीं थी; लुका 6:12 और मरकुस 1:35
यीशु मसीह ने अपने बपतिश्में, परीक्षा आज महान आंसुओं से पहले प्रार्थना की; लुका3:21
यीशु मसीह ने अपने होठों पर पिता से प्रार्थना के साथ अपना पार्थिव जीवन समाप्त किया लुका 23:46 यीशु मसीह बहुदा प्रार्थना के लिए एकांत खोजा करता था, वह पर्वत पर या इसी एकांत स्थान पर चला जाता था।
कभी वह अकेले प्रार्थना करता था, मत्ती 14:13; और कभी चेलों के साथ; लुका 9:28,22:39-46 यीशु मसीह ने व्यक्तियों के लिए प्रार्थना की, और अपने लोगों के लिए। उसने गतसमनी में पिता की इच्छा के अधीन नम्रतापूर्वक प्रार्थना की; मत्ती 26:42
यीशु मसीह ने अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखाया और हमें भी ऐसा ही करने को कहा मत्ती 6:9-13 प्रार्थना द्वारा वाह परीक्षा पर प्रबल हुआ उसने आश्चर्यकर्म संपन्न किए मृत्यु से बचा की और परमेश्वर महिमा की।
6.यीशु मसीह दीन था
दीनता मस्तिष्क का व्यवहार है यह निष्ठुर ता और कलह विरोधी होती है,दीनता अपना प्रकृतिकरण दूसरों के प्रति कोमलता और स्नेह के द्वारा करती है
यीशु मसीह स्वयं कहता है कि वह दीन है मत्ती 11:29, "मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लो और मुझसे सीखो, क्योंकि मै नम्र और में का दीन हूं,"
पौलुस ने कुरिंथियों से यह प्रश्न किया: 1 कुरिंथियों 4:21, "तुम क्या चाहते हो? क्या मैं छड़ी लेकर तुम्हारे पास आऊं या प्रेम और नम्रता की आत्मा के साथ? मसीही होने के नाते हमें दीनता सीखनी है। गलतियों 6:1, "नम्रता की आत्मा के साथ? ऐसे संभालो और अपनी भी चौकसी रखो" 2 तिमुथियस 2:24,25 "और प्रभु के दास को झगड़ालू नहीं होना चाहिए, पर सबके साथ कोमल और शिक्षा में निपुण और सहनशील होना चाहिए।"
सारांश
फिलिप्पियों 2:5, "जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था, वैसा ही तुम्हारा भी स्वाभाव हो।"
आइए, हम उद्धारकर्ता, प्रभु यीशु ख्रीस्त की पवित्रता प्रेम, करुणा, दीनता और नम्रता की नकल ना करें वरन उनको पुनः उत्पन्न करें। यीशु के समान होना बाहरी नहीं, परंतु भीतरी तौर पर शुद्ध सत्यवादी और प्रार्थनशील होना है, जैसा कि वह है। जब हम स्वयं को समर्पित कर देते हैं तो वह यह चाहता है कि वह वैसे ही चरित्र का जीवन हम में रह कर व्यतीत करे
रोमियों 6:19, आइए हम, "अपने अंगों को पवित्रता के लिए धर्म के दास करके (प्रभु को) सौंप दे।
Very good article but a comment. From my side too, you conclude a bit too. It would have been great if I had written.
ReplyDeleteVery nice God bless you
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